क्षमा कर देने से अच्छा और कोई उपाय नहीं है शान्ति का, प्रथम क्षमा देव शास्त्र गुरू भगवन्तों से कि उनके बताए मार्ग पे नहीं चले, मनुष्य गति के समस्त जीवों से , देव गति के जीवों से , नरक के जीवों से कि उनको हमेशा घृणा की दृष्टि से देखा, पशु गति के समस्त जीवों से कि उन्हें क्षमा औपचारिकता नहीं है, ये सहज स्वभाव है जो लोक व्यवहार और अध्यात्म जगत दोनों में हमे समता शान्ति प्रदान करता है, हरेक बात में गुस्सा हो जाना , कुतर्क कर देना बहुत आसान है, क्षमा करने में साहस चाहिए और उससे भी अधिक क्षमा मांगने में, ordinary people can't afford both गलती जो प्रगट रूप से दिखती हैं वो बहुत कम हैं,जो apragat रूप से हैं क्रोध मान माया लोभ मिथ्यात्व आदि इनसे badhke जीव क्या ही गलती करेगा और इनका अभाव बिना अपने आत्मस्वरुप को जाने समझे नहीं हो पाएगा! अंतर्मुखी पुरुषार्थ से ही इन गलतियों की क्षमा मिल पाएगी और ये क्षमा सम्यक्त्व के रूप में होगी,जब ये आत्मा samyaktv के सन्मुख होगा,६ द्रव्य ७ तत्व का यथार्थ स्वरूप समझेगा, अनंतअनुबंधी का अभाव करेगा तब सहज ही क्षमा का पात्र बन जाएगा
ऐसी क्षमा हम सबको शीघ्र प्रगट होवे ऐसी भावना
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क्षमा
क्षमा करना सबके बस की बात नहीं,
क्योंकि ये मनुष्य को
बहुत बड़ा बना देता है।
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#क्षमा
क्षमा मांगने से दूसरों को नहीं,
स्वयं को लाभ होता है।
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क्षमा का मतलब है कि
जो बीत गया उसे जाने दो !
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क्षमा
कषायवान व्यक्ति क्षमाभाव नहीं रखता है,
लेकिन क्षमावान व्यक्ति अपने जीवन में
कषायों की आहुति कर देता है ।
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कषाय - क्रोध, अहंकार, माया, लोभ।
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क्षमा
बदला लेने का मजा सिर्फ एक दिन का है और
क्षमा करने का मजा पूरे जीवन का होता है।
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