Tuesday, April 27, 2021

जियो और जीने दो ???

जियो और जीने दो ?
भगवान्  महावीर का सिद्धांत हैं - जीने की वांछा करना राग, 
मरने की वांछा करना द्वेष और 
संसार समुद्र से तरने की वांछा करना वीतराग देव का धर्म हैं  |
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जियो और जीने दो के  साथ इस घोष के साथ 
एक शब्द और जोड़ दिय जाये तब 
यह भगवान महावीर की आगम सम्मत वाणी बन जायेगी - 
संयम से जियो और संयम से जीने दो |
- आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी
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जिओ और जीने दो - 
तेरापंथ धर्म-संघ इसको मान्यता नहीं देता |
क्योंकि जिओ में कोई संयम नहीं है,
तो कोई सार नहीं है |
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भगवान् महावीर के अनुसार 
हम कौन होते हैं दूसरों को जीवन देने वाले |
हम स्वयं अपने आयुष्य का 
एक क्षण भी नहीं बढ़ा सकते दूसरों को क्या जीवन देगें?
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यह मंत्र नहीं, घोष है।
जो तेरापंथ समाज को छोड़कर 
अन्य सम्प्रदाय में ज्यादा प्रचलित है।
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आचार्य तुलसी यह महावीर का घोष नहीं है।
उनका घोष है जागो और जगाओ।
तरो और तारो।
- आचार्य तुलसी
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भगवान महावीर के २६०० जन्म कल्याणक को
पूरा जैन समाज के साथ मन रहा था |
जिओ और जीने दो
- यह घोष पुनः उपस्थित हुआ |
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अब यह इतना प्रचलित हो गया कि
इसको बंद करने के लिए कोई सम्प्रदाय राजी नहीं हुआ |
यद्दपि यह भगवान महावीर की वाणी नहीं है |
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इसके साथ यह जुड़ जाए संयम से जिओ और संयम से जीने दो तो
महावीर वाणी का प्रतिनिधित्व हो सकता है |
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आचार्य भिक्षु ने संयम पर बल दिया |
जीने की वांछा कारण राग और मरने की वांछा करना द्वेष और
इस संसार सागर से तरने की वांछा करना वीतराग देव का धर्म है|
- आचार्यश्री महाप्रज्ञजी
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जिओ और जीने दो -
महावीर ने नहीं सिखलाया |
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संसार सागर से तरो और तारो |
पाप से बचो और बचाओ |
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आचार्य भिक्षु ने बताया - असंयमी प्राणी के जीने की वांछा करना राग ,
मरने की वांछा करना द्वेष और
संसार सागर से तरने की वांछा करना शुद्ध धर्म है |
जियो और जीने दो -
इस सिद्धांत को तेरापंथ धर्म संघ मान्यता नहीं देता |
- गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी 

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