Friday, September 10, 2021

क्षमा

क्षमा कर देने से अच्छा और कोई उपाय नहीं है शान्ति का, प्रथम क्षमा देव शास्त्र गुरू भगवन्तों से कि उनके बताए मार्ग पे नहीं चले, मनुष्य गति के समस्त जीवों से , देव गति के जीवों से , नरक के जीवों से कि उनको हमेशा घृणा की दृष्टि से देखा, पशु गति के समस्त जीवों से कि उन्हें क्षमा औपचारिकता नहीं है, ये सहज स्वभाव है जो लोक व्यवहार और अध्यात्म जगत दोनों में हमे समता शान्ति प्रदान करता है, हरेक बात में गुस्सा हो जाना , कुतर्क कर देना बहुत आसान है, क्षमा करने में साहस चाहिए और उससे भी अधिक क्षमा मांगने में, ordinary people can't afford both गलती जो प्रगट रूप से दिखती हैं वो बहुत कम हैं,जो apragat रूप से हैं क्रोध मान माया लोभ मिथ्यात्व आदि इनसे badhke जीव क्या ही गलती करेगा और इनका अभाव बिना अपने आत्मस्वरुप को जाने समझे नहीं हो पाएगा! अंतर्मुखी पुरुषार्थ से ही इन गलतियों की क्षमा मिल पाएगी और ये क्षमा सम्यक्त्व के रूप में होगी,जब ये आत्मा samyaktv के सन्मुख होगा,६ द्रव्य ७ तत्व का यथार्थ स्वरूप समझेगा, अनंतअनुबंधी का अभाव करेगा तब सहज ही क्षमा का पात्र बन जाएगा

ऐसी क्षमा हम सबको शीघ्र प्रगट होवे ऐसी भावना

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क्षमा

क्षमा करना सबके बस की बात नहीं, 

क्योंकि ये मनुष्य को 

बहुत बड़ा बना देता है।

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#क्षमा 

क्षमा मांगने से दूसरों को नहीं, 

स्वयं को लाभ होता है।

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क्षमा का मतलब है कि 

जो बीत गया उसे जाने दो !

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क्षमा

कषायवान व्यक्ति क्षमाभाव नहीं रखता है,

लेकिन क्षमावान व्यक्ति अपने जीवन में 

कषायों की आहुति कर देता है ।

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कषाय - क्रोध, अहंकार, माया, लोभ।

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क्षमा

बदला लेने का मजा सिर्फ एक दिन का है और 

क्षमा करने का मजा पूरे जीवन का होता है।

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क्षमा
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जो गांठें खुल सकती हैं,
उनपर कैंची मत चलाओ
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क्षमा
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क्षमा एक करता है,
मुक्त दो लोग होते हैं!
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क्षमा
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अनंत (infinite)
कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ)
जहां चला गया,
अनंत क्षमा आ जाती है |
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क्षमा

कोई कुछ भी करे, 
उसके प्रति वैरभाव नहीं आना 
ये सबसे ज्यादा प्रसन्नता की दवाई है 
और वैर रखना सबसे बड़ी बीमारी है। 
वैर नहीं रखना सबसे उत्तम बात है । 
वैर रखना नील लेश्या का परिणाम है।
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जो क्षमाभाव धारण करता है,
वह अपने तन-मन को 
बड़ा कर लेता है।
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#क्षमा
अपने आपको क्षमा मांगकर हल्का बना लेना चाहिए । 
क्षमा का भाव मोक्षमार्ग में एक तरफ ही होता है, 
वह क्षमा करे या न करे हमें तो क्षमा मांग लेना चाहिए।
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#क्षमा
धरती को भी क्षमा कहा गया है; 
क्योंकि वह अपनी छाती में निर्मल जल भी रखती है और 
गंदाजल भी रखती है ।
लेकिन परिणामों में गंदापन नहीं लाती है। 
हम भी ऐसा कार्य करें।
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#क्षमा
क्षमा नहीं है 
तो जीवन नहीं है।
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#क्षमा
अमृत वहीं है,
जहाँ क्रोध रूपी विष नहीं है

Tuesday, April 27, 2021

संकल्प का प्रयोग -Misfire

संकल्प का प्रयोग -Misfire 
कलकत्ते में एक घर में प्रवास के समय घर की बहु ने समणी जी को बताया कि मेरी सास जो ७५ वर्ष की है, दिन में २ बार नहाती हैं, वो भी ४५ मिनट तक | आप कुछ समझा सकें तो....
शाम को सास को समणी जी ने समझाया कि शरीर का इतना ममत्व सही नहीं |
सास बोली मैं भी समझती हूँ, पर बचपन से आदत है |
समणी जी ने कहा - मांजी ! एक काम करो | दिन भर " आत्मा म्हारी, शरीर न्यारो " का जाप किया करो, ३ महीने बाद बताना |
( नोट - आत्मा म्हारी, शरीर न्यारो का हिंदी अनुवाद = आत्मा मेरी, शरीर अलग )
३ महीने भी बीत गए |
पूरा परिवार समणी जी के दर्शन करने आया |
एकांत मिलते ही बहु बोली - समणी जी ! आपने मांजी को क्या समझाया |
अब तो वोह दोपहर में भी नहाने लगी हैं |
समणी जी भी चकित !
ये क्या हुआ |
खैर.....
सास को बुलाकर उनकी खैर-तवज्जो पूछी, फिर बोली -
आपको मन्त्र बताया था, उसका जाप करती हैं ना ?
मांजी - हां ! समणी जी |
समणी जी - नहाना कम हुआ ?
मांजी - नहीं, अब तो मैं तीन बार नहाती हूँ |
समणी जी - आप क्या जाप करती हैं ?
मांजी बोली - आत्मा न्यारी, शरीर म्हारो |
( आत्मा न्यारी, शरीर म्हारो का हिंदी अनुवाद = आत्मा अलग, शरीर मेरा )

जियो और जीने दो ???

जियो और जीने दो ?
भगवान्  महावीर का सिद्धांत हैं - जीने की वांछा करना राग, 
मरने की वांछा करना द्वेष और 
संसार समुद्र से तरने की वांछा करना वीतराग देव का धर्म हैं  |
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जियो और जीने दो के  साथ इस घोष के साथ 
एक शब्द और जोड़ दिय जाये तब 
यह भगवान महावीर की आगम सम्मत वाणी बन जायेगी - 
संयम से जियो और संयम से जीने दो |
- आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी
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जिओ और जीने दो - 
तेरापंथ धर्म-संघ इसको मान्यता नहीं देता |
क्योंकि जिओ में कोई संयम नहीं है,
तो कोई सार नहीं है |
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भगवान् महावीर के अनुसार 
हम कौन होते हैं दूसरों को जीवन देने वाले |
हम स्वयं अपने आयुष्य का 
एक क्षण भी नहीं बढ़ा सकते दूसरों को क्या जीवन देगें?
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यह मंत्र नहीं, घोष है।
जो तेरापंथ समाज को छोड़कर 
अन्य सम्प्रदाय में ज्यादा प्रचलित है।
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आचार्य तुलसी यह महावीर का घोष नहीं है।
उनका घोष है जागो और जगाओ।
तरो और तारो।
- आचार्य तुलसी
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भगवान महावीर के २६०० जन्म कल्याणक को
पूरा जैन समाज के साथ मन रहा था |
जिओ और जीने दो
- यह घोष पुनः उपस्थित हुआ |
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अब यह इतना प्रचलित हो गया कि
इसको बंद करने के लिए कोई सम्प्रदाय राजी नहीं हुआ |
यद्दपि यह भगवान महावीर की वाणी नहीं है |
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इसके साथ यह जुड़ जाए संयम से जिओ और संयम से जीने दो तो
महावीर वाणी का प्रतिनिधित्व हो सकता है |
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आचार्य भिक्षु ने संयम पर बल दिया |
जीने की वांछा कारण राग और मरने की वांछा करना द्वेष और
इस संसार सागर से तरने की वांछा करना वीतराग देव का धर्म है|
- आचार्यश्री महाप्रज्ञजी
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जिओ और जीने दो -
महावीर ने नहीं सिखलाया |
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संसार सागर से तरो और तारो |
पाप से बचो और बचाओ |
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आचार्य भिक्षु ने बताया - असंयमी प्राणी के जीने की वांछा करना राग ,
मरने की वांछा करना द्वेष और
संसार सागर से तरने की वांछा करना शुद्ध धर्म है |
जियो और जीने दो -
इस सिद्धांत को तेरापंथ धर्म संघ मान्यता नहीं देता |
- गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी