Tuesday, April 27, 2021

संकल्प का प्रयोग -Misfire

संकल्प का प्रयोग -Misfire 
कलकत्ते में एक घर में प्रवास के समय घर की बहु ने समणी जी को बताया कि मेरी सास जो ७५ वर्ष की है, दिन में २ बार नहाती हैं, वो भी ४५ मिनट तक | आप कुछ समझा सकें तो....
शाम को सास को समणी जी ने समझाया कि शरीर का इतना ममत्व सही नहीं |
सास बोली मैं भी समझती हूँ, पर बचपन से आदत है |
समणी जी ने कहा - मांजी ! एक काम करो | दिन भर " आत्मा म्हारी, शरीर न्यारो " का जाप किया करो, ३ महीने बाद बताना |
( नोट - आत्मा म्हारी, शरीर न्यारो का हिंदी अनुवाद = आत्मा मेरी, शरीर अलग )
३ महीने भी बीत गए |
पूरा परिवार समणी जी के दर्शन करने आया |
एकांत मिलते ही बहु बोली - समणी जी ! आपने मांजी को क्या समझाया |
अब तो वोह दोपहर में भी नहाने लगी हैं |
समणी जी भी चकित !
ये क्या हुआ |
खैर.....
सास को बुलाकर उनकी खैर-तवज्जो पूछी, फिर बोली -
आपको मन्त्र बताया था, उसका जाप करती हैं ना ?
मांजी - हां ! समणी जी |
समणी जी - नहाना कम हुआ ?
मांजी - नहीं, अब तो मैं तीन बार नहाती हूँ |
समणी जी - आप क्या जाप करती हैं ?
मांजी बोली - आत्मा न्यारी, शरीर म्हारो |
( आत्मा न्यारी, शरीर म्हारो का हिंदी अनुवाद = आत्मा अलग, शरीर मेरा )

जियो और जीने दो ???

जियो और जीने दो ?
भगवान्  महावीर का सिद्धांत हैं - जीने की वांछा करना राग, 
मरने की वांछा करना द्वेष और 
संसार समुद्र से तरने की वांछा करना वीतराग देव का धर्म हैं  |
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जियो और जीने दो के  साथ इस घोष के साथ 
एक शब्द और जोड़ दिय जाये तब 
यह भगवान महावीर की आगम सम्मत वाणी बन जायेगी - 
संयम से जियो और संयम से जीने दो |
- आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी
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जिओ और जीने दो - 
तेरापंथ धर्म-संघ इसको मान्यता नहीं देता |
क्योंकि जिओ में कोई संयम नहीं है,
तो कोई सार नहीं है |
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भगवान् महावीर के अनुसार 
हम कौन होते हैं दूसरों को जीवन देने वाले |
हम स्वयं अपने आयुष्य का 
एक क्षण भी नहीं बढ़ा सकते दूसरों को क्या जीवन देगें?
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यह मंत्र नहीं, घोष है।
जो तेरापंथ समाज को छोड़कर 
अन्य सम्प्रदाय में ज्यादा प्रचलित है।
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आचार्य तुलसी यह महावीर का घोष नहीं है।
उनका घोष है जागो और जगाओ।
तरो और तारो।
- आचार्य तुलसी
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भगवान महावीर के २६०० जन्म कल्याणक को
पूरा जैन समाज के साथ मन रहा था |
जिओ और जीने दो
- यह घोष पुनः उपस्थित हुआ |
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अब यह इतना प्रचलित हो गया कि
इसको बंद करने के लिए कोई सम्प्रदाय राजी नहीं हुआ |
यद्दपि यह भगवान महावीर की वाणी नहीं है |
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इसके साथ यह जुड़ जाए संयम से जिओ और संयम से जीने दो तो
महावीर वाणी का प्रतिनिधित्व हो सकता है |
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आचार्य भिक्षु ने संयम पर बल दिया |
जीने की वांछा कारण राग और मरने की वांछा करना द्वेष और
इस संसार सागर से तरने की वांछा करना वीतराग देव का धर्म है|
- आचार्यश्री महाप्रज्ञजी
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जिओ और जीने दो -
महावीर ने नहीं सिखलाया |
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संसार सागर से तरो और तारो |
पाप से बचो और बचाओ |
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आचार्य भिक्षु ने बताया - असंयमी प्राणी के जीने की वांछा करना राग ,
मरने की वांछा करना द्वेष और
संसार सागर से तरने की वांछा करना शुद्ध धर्म है |
जियो और जीने दो -
इस सिद्धांत को तेरापंथ धर्म संघ मान्यता नहीं देता |
- गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी