Saturday, January 28, 2012

५ महाव्रत + ५ समिति + ३ गुप्ति

तेरापंथ का तात्विक अर्थ -
५ महाव्रत + ५ समिति + ३ गुप्ति
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* ५ महाव्रत हैं -
१. अहिंसा महाव्रत 
२. सत्य महाव्रत 
३. अस्तेय महाव्रत 
४. ब्रह्मचर्य महाव्रत 
५. अपरिग्रह महाव्रत
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* ५ समिति हैं -
१. इर्यासमिति 
२. भाषा-समिति 
३. एषणा-समिति 
४. आदान निक्षेप समिति 
५. उत्सर्ग-समिति
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* गुप्ति ३ प्रकार की हैं -
१. काय-गुप्ति 
२. वचन-गुप्ति 
३. मनो-गुप्ति
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व्याख्या -
* पांच महाव्रत -
१.अहिंसा महाव्रत - हिंसा नहीं करना |
२. सत्य महाव्रत - असत्य नहीं बोलना |
३. अस्तेय महाव्रत - चोरी नहीं करना |
४. ब्रह्मचर्य महाव्रत - ब्रह्मचर्य का पालन करना |
५. अपरिग्रह महाव्रत - परिग्रह नहीं रखना |
* पांच समिति -
१. इर्या समिति - चलते समय या हिलते-डुलते समय सावधानी रखना |
२. भाषा-समिति - पापकारी भाषा न बोलना |
३. एषणा-समिति - भिक्षाचारी में भोजन या पानी की गोचरी करते समय सावधानी-पूर्वक गवेषणा करना |
एषणा समिति ३ प्रकार की होती है -
अ. गवेषणा - खाद्य-सामग्री लेने से पहले अच्छी तरह जांच-पड़ताल करना |
ब. ग्रहण-एषणा - भिक्षा की सामग्री का खुद निरीक्षण करना | 
स. परिभोगैषना - परिभोग करने के तरीके की जांच करना |
४. आदान-निक्षेप समिति - भिक्षा की सामग्री लेते समय और
बाद में उसके रख-रखाव ( वह स्थान जहां वह सामग्री राखी जाती है ) का ख्याल रखना 
५. उत्सर्ग-समिति - किसी वस्तु का उत्सर्ग करते समय स्थान की देख-भाल करना |
तीन गुप्ति -
१. काय-गुप्ति - शरीर का अनुशासन | 
२. वचन-गुप्ति- वचन का अनुशासन |
३. मनो-गुप्ति - मन का अनुशासन |
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साधू-जीवन है,
फिर भी शरीर तो है,
और शरीर है तो प्रवृत्ति भी होती है |
उस प्रवृत्ति में कैसे संयम रखना 
और सावधानी पूर्वक रहना इन का ध्येय है |
हर समय जागरूक रहकर कार्य करना |
आत्मा की विस्मृति एक क्षण भी नहीं करना |
क्योंकि आत्मा की विस्मृति दुःख है |
प्रवृती का स्रोत बदल जाने से सब कुछ बदल जाएगा |
अब तक शरीर, मन, वाणी और इंदियों की प्रधानता थी 
और 
अब आत्मा प्रधान हो जायेगी |
बाहर की प्रवृत्ति चंचलता लाती है 
जीवन का परम सार-सूत्र है - आत्म-स्थित होना |
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गुप्ति का अर्थ है - गोपन, संवरण |
शरीर को स्थिर कर,
मन को शांत कर,
मौन होकर कुछ समय के लिए प्रवृत्ति को विश्राम देना,
जिससे उस अक्रिय आत्मा की झांकी प्रतिबिबित हो सके |

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