Wednesday, February 15, 2012

सिद्ध-स्तवन

जहां न जन्म है,
न जरा है,
न मृत्यु है,
न भय है 
और 
न कोई शोक ही है |
जहां किसी प्रकार का आवरण नहीं है |
जहां से तुम समस्त व्यक्तियों के आचरण को देख रहे हो
उस अदभुत स्थान को
देव !
मैं तुम्हारी नामरुपी यष्टि को स्वयं हाथ में धारण कर देखने के लिए उत्सुक हूँ |
क्योंकि मैं लौकिक सदनों को देख-देख कर तृप्त हो चूका हूँ |

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