Friday, May 18, 2012

भरे हुए को ही भरते हैं

मेघाष्टकम - 
आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने मेघ को गहराई से देखा |
मेघ के माध्यम से उन्होंने मानवीय प्रकृति को चित्रित करते हुए लिखा -
" जिस मरुधर प्रदेश में सूर्य के आतप से भूमि-विभाग अग्नि की तरह तप उठता है 
और 
जहां के प्यासे लोग चिलचिलाती धुप से झुलसते हुए बूँद-बूँद के लिए प्रतीक्षा करते हैं,
वहां मेघ का दर्शन सुलभ नहीं होता |
किन्तु जहां समुद्र की लहरें उछलती रहती हैं,
वहां बादलों का समूह आकाश में मंडराता रहता है |
( वर्षा भी अत्यधिक होती है )
यह सत्य है कि
सभी लोग भरे हुए को ही भरते हैं |
~ आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की पुस्तक " प्रकृतिविहार: " से

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