Thursday, May 31, 2012

क्षमा

" क्षमा "
" क्षमायां स्थाप्यते धर्म: "
अनुवाद 
धर्म के रहने का स्थान क्षमा ही है |
क्षमा के अभाव में कोई धर्म टिक ही नहीं सकता |
---------------------------------------------
क्षमाशील पुरुष किसी के द्वारा कहे गए कटु वचन सुनकर ऐसा चिंतन-मनन करते हैं -
" मैं इसका कुछ अपराध किया है या नहीं ? "
अगर अपराध किया है,
तो उसके बदले मुझे कटु शब्दों को सहन करना ही चाहिए |
बिना बदला चुकाए छुटकारा मिल नहीं सकता |
अगर इस समय बदला नहीं चुकाऊंगा तो आगे ब्याज सहित चुकाना पड़ेगा |
अच्छा ही हुआ कि यह यहीं चुकता कर रहा है |
-----------------------------------------------
अगर मैंने अपराध नहीं किया है 
और 
यह कटु वचन कह रहा है तो इसमें मेरी क्या हानि है ?
यह अपने अपराधी से कह रहा है |
मैं निरपराध हूं |
इसलिए गालियाँ मुझे लगती नहीं |
बेचारा मूढ़ बोलते-बोलते स्वयं थक जाएगा,
तब चुप हो जायेगा |
-------------------------
क्षमावान व्यक्ति यह भी सोचता है, चिंतन करता है, मनन करता है -
यह मूढ़ मनुष्य मुझे चोर, ठग, कपटी आदि कहता है,
सो ठीक ही कहता है |
क्योंकि इस जन्म में नहीं तो पिछले किसी जन्म में मैंने ये कृत्य भी किये होंगे |
यह सत्य कह रहा है |
सत्यवादी पर मुझे 'क्रोध' नहीं करना चाहिए |
----------------------------------
अगर कोई व्यक्ति आपको कर्महीन या अकर्मी कहे,
तो यह वचन सुनकर क्षमाशील पुरुष को समझना चाहिए कि 
यह तो मुझे मोक्ष प्राप्त करने का आशीर्वाद दे रहा है,
क्योंकि जो कर्महीन अथवा अकर्मी होता है,
वही मोक्ष पाता है |
---------------------------
क्षमाशील पुरुष को यह सोचना चाहिए कि 
जिसके पास जैसी वस्तु होगी,
वह वैसी ही दे सकता है |
हलवाई की दूकान पर मिठाई और चमार की दूकान पर जुते मिलते हैं |
इसी प्रकार उत्तम जनों से अच्छे वचन प्राप्त होते हैं 
और 
अधम जनों से खराब वचन सुनने को मिलते हैं |
---------------------------------------
अगर आपको गाली बुरी लगती है तो
उसे ग्रहण ही न् करें |
अस्वीकार कर दें |
अपने ह्रदय की पवित्रता को कलुषित मत होने दें |
कोई विवेकशील पुरुष अपने सोने के पात्र में गंदगी नहीं भरता |

-----------------------------------------
अगर कोई अपशब्द कहता है तो उसके द्वारा बोले गए शब्दों पर ध्यान देना चाहिए |
जो दुर्गुण सामनेवाला व्यक्ति बतला रहा है,
उनके विषय में विचार करना चाहिए |
-----------------------
अगर वे दुर्गुण भीतर मौजूद हैं
तो सोचना चाहिए कि
भीतरी रोग की परीक्षा के लिए वैद्य-डाक्टर को फीस देनी पड़ती है |
लेकिन इस निंदक ने फीस लिए बिना ही भीतर का ' भयंकर ' रोग बतला दिया है |
मुझे तो इसका उपकार मानना चाहिये |

---------------------------------
अगर निंदक द्वारा कहे गए दोष अपने भीतर नहीं है,
तो यह समझना चाहिए कि -
" हीरा " को कांच कह देने से " हीरा " कांच नहीं बन जाता |
इसी प्रकार जब मैं बुरा नहीं हूं,
तो " किसी " के कहने से कैसे बुरा हो जाऊँगा ?

-----------------------------------
क्रोधवश सामनेवाला मारने आता है या मारता है,
तो विवेकशील पुरुष चिंतन करता है,
मनन करता है और श्लोक को स्मरण करता है -

" नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक: |
न चैनं क्लेदयंत्यापो, न शोषयति मारुत : || "
अर्थात् -
आत्मा को शस्त्र छेद नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती,
जल गला नहीं सकता और वायु सोख नहीं सकती |
--------------------------------------------
शरीर आत्मा से भिन्न है,
इसका नाश अवश्यंभावी है;
फिर इस विनाशशील शरीर के लिए मैं अपने " क्षमाधर्म " को क्यों नष्ट करूं ?



No comments:

Post a Comment