Thursday, May 31, 2012

धर्म है -

" धर्म है - संवर और निर्ज़रा |
धर्म का एक काम है कर्मों को रोकना |
धर्म का दूसरा काम है कर्मों को तोडना |
बस धर्म के दो ही काम हैं |
पुण्य का होना या अच्छा फल मिलना,
यह धर्म का कार्य नहीं है |
फिर भी लीग कह देते हैं -
धर्म से पुत्र मिला, धन मिला आदि |
पुण्य का बंध निर्ज़रा से नहीं,
निर्ज़रा के साथ होता है |
अनाज से 'खाखला' नहीं होता,
अनाज के साथ-साथ होता है |
यह साहचर्य, साथ में होना |
जहां धर्म है,
निर्ज़रा है,
वहां उसके साथ-साथ पुण्य का बंध भी होता है |
उस बंध से अच्छे फल मिलते हैं |

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