Friday, July 6, 2012

भाग्य/ पुरुषार्थ


ब्रह्मा का अभिलेख पढ़ा करते निरुद्दमी प्राणी |
धोते वीर कुअंक भाल का बहा भ्रुवों से पानी ||
~रामधारी सिंह दिनकर 
भाग्य का भरोसा तो पुरुषार्थहीन, क्लीव और कायर लोग करते हैं |
पुरुषार्थी कभी भाग्य के भरोसे नहीं बैठता |
आइंस्टीन को उनके शिक्षक ने कहा था कि
तुम गणित जैसे विषय में कभी सफल नहीं हो सकते |
विषय बदल लो |
आइंस्टीन ने पुरुषार्थ किया |
एक दिन वह आया
कि
आइंस्टीन बहुत बड़े गणितज्ञ ही नहीं,
विश्व के सिरमौर वैज्ञानिक बने |
किसी देवी-देव ने आकर उन्हें आशीर्वाद तो नहीं दिया |
भगवान महावीर ने कर्म सिद्धांत के सन्दर्भ में कहा
कि
४ ऐसे तत्व हैं
जिनसे कर्म का परिवर्तन होता है -
१. उदीरणा
२. उद्वर्तन,
३. अपवर्तन,
४. संक्रमण
इनके द्वारा आदमी अविकसित से विकसित अवस्था की ओर अग्रसर हो सकता है |

नोट-
१.उदीरणा - विशिष्ट पुरुषार्थ से कर्म को उदय से पहले उदय में लाना |
उदाहरण - किसी व्यक्ति को काम के लिए ४ दिन का समय दिया गया,
उसने वह कार्य २ दिन में ही कर दिया |
२. उद्वर्तन - समय और रस को विशिष्ट पुरुषार्थ से बढ़ा देना |
३. अपवर्तन - समय और रस को विशिष्ट पुरुषार्थ से घटा देना |
उदाहरण - आज तत्व-ज्ञान की कक्षा २ से ४ बजे तक है |
पढ़ने वालों ने कहा - " आज कोई विशेष काम नहीं है, कक्षा ४-३० बजे तक चलाइए |
ये उद्वर्तन हो गया |
उन्होंने अपने पुरुषार्थ से अपने शुभ योग को आधा घंटा बढ़ा लिया |
यदि वे कहते कि घर में काम है, आप ३-३० बजे तक ही पढ़ाना,
तो ये अपवर्तन हो गया |
इन्होने अपने ही पुरुषार्थ से अपने शुभ योग को घटा लिया | 
४. संक्रमण - विशिष्ट पुरुषार्थ से कर्म प्रकृतियों का शुभ से अशुभ
या अशुभ से शुभ में परिवर्तित करना |

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