Wednesday, July 11, 2012

क्रोध - एक कतलखाना


" क्रोध - एक कतलखाना "
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क्रोध एक कतल खाना है |
यह आपकी आत्मा के टुकड़े-टुकड़े कर देता है |
कितनी भी आत्मा को निर्मल रखने की कोशिश करें,
लेकिन क्रोध से आत्मा टूट जाती है |
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कोई स्वयं की ताक़त बताए,
चाहे कुछ भी कहे लेकिन आप शांत रहें,
क्रोध मत करें |
चाहे वो यह विचारे कि उसकी ताक़त की जीत हुई,
लेकिन वास्तव में तो आपकी आत्मा की शक्ति और भक्ति की जीत हुई है
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अपरम्पार क्रोध, जो चंडकौशिक के ज़हर से भी ज्यादा होता है,
एक शब्द बोलते ही जहां अनेक शब्द आमने-सामने बोलते हों,
वहां आत्मा कहां से छूटे ?
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यदि अरहंत की वाणी की एक अंश जितनी शक्ति ले लें,
तो उद्धार होगा |
कुछ भी हो ऐसा नहीं बोलूं |
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कषाय की ताक़त नहीं,
सहन शक्ति की ताक़त आपको प्रकाश देगी |
सहनशीलता का अमृत घूंट पीने का है,
वह पीएं,
कषायों ( क्रोध, मान, माया आदि ) के पीछे पागल न बनें |
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यदि नाथ ( अरहंत ) के अंदर लीन रहकर रोक सकें तो नाथ को कह सकते हैं -

' क्रोधरूपी शत्रु कीचड़ लेकर आए थे |
हे नाथ ! क्या आपकी शीतलता कि मुझे एक भी दाग कहीं नहीं लगा,
ऐसी आपकी दया है, समभाव है, दुश्मन से प्रेम, सिर काटे तो भी शीतलता,
भगवान् की वाणी को याद करो |
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प्रभू पारसनाथ को याद करो,
८ भव तक स्वयं के सगे भाई ने दुश्मन बनकर माना फिर भी समभाव,
महावीर के कान में कीलें ठोकी,
फिर भी ध्यान में लीन,
भगवान् का जमाई भगवान् के विरुद्ध |
फिर भी ....समभाव |
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किसके लिए ?
किसके लिए क्रोध करना ?
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कषाय के कतलखाने की चाबी खोलने की मुझे क्या जरूरत ?
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शीतलता, निर्मलता के अंदर केरोसीन की बूँदें पड़े तो भी 
दियासलाई का उपयोग मत करो |
आप संसार को छोडिये,
मतलब दीक्षा नहीं, वैराग्य नहीं |
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लेकिन क्रोध, मान, माया से मुक्त रहें |
क्रोध आते ही आत्मा को शांत करें |
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जीना तो २ घड़ी,
उसमें क्रोध किसके लिए ?
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आत्मा से कहें --
तुझे जरूरत क्या है ?
तू अच्छा काम कर !
पुदगल उनका काम करें,
चाहे वेदना हो |
अमृत का घड़ा भरने में देर लगती है,
विचारते-विचारते कर्म के बंधन टूटते हैं,
रास्ता मिलता है |
क्रोध आए तब उसे धक्का मारें |
क्रोध करना ही नहीं है |

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