Saturday, July 14, 2012

चंचल मन


* मन संवेदनाओं के साथ जुड़ने से चंचल बनता है |
* आसक्ति के साथ जुडकर मन चंचल बनता है |
यदि आसक्ति को हटा दें तो चंचलता अपने आप कम हो जायेगी |
* पदार्थ के साथ मन का जुड़ाव होने से,
उसकी बार-बार स्मृति होने से,
कल्पना करने से और
उसी विषय में लगातार चिंतन करने से मन चंचल हो जाता है |
पदार्थ जगत की मूर्च्छा ने और पदार्थ की अनुरक्ति ने मन को चंचल बना रखा है |
चंचलता मुख्य समस्या नहीं है |
मुख्य समस्या है - अनुराग |
जितनी-जितनी आसक्ति,
उतनी-उतनी मन की चंचलता |
जिस व्यक्ति के मन में वैराग्य है,
वह कभी नहीं कहेगा -
" मन बहुत चंचल है "
मन की चंचलता और समस्या उस व्यक्ति के लिए,
जो पदार्थ के साथ रागात्मक सम्बन्ध स्थापित कर रहा है |
जितने भी मानसिक (Mental) केस हैं और
जितने भी साइक्रियाटिक के प्रयोग हैं,
वे इसलिए हैं कि वे इस सच्चाई को जानते हैं कि
मन की समस्या किसी दुसरे के द्वारा पैदा की जा रही है |
समस्या पैदा कर रहा है -
" रागात्मक अनुबंध |"
जब गौतम स्वामी से केशी स्वामी मिलते हैं तो पूछते हैं -
" मन एक तेज घोड़ा है |
बहुत साहसी है, भयंकर भी है |
वेग से भागते हुए इस घोड़े को तुमने कैसे वश में किया ?"
गौतम स्वामी बोले -
" केशी ! तुम ठीक कहते हो |
मन तुरंग की तरह चंचल है |
मैंने उसे श्रुत की वल्गा या लगाम से अपने वश में किया है |
वह अब मेरे अधीन है |
जैसे उसे चलाता हूं, वैसे ही चलता है |
परमात्मा का प्रकाश मिलता है ?
स्वाध्याय और ध्यान --
इस संपदा के द्वारा परमात्मा का प्रकाश फैलता है |
ध्यान का बड़ा महत्व है, किन्तु स्वाध्याय का भी कम नहीं है |
एक अपेक्षा के आधार पर एक आचार्य ने तो यहां तक लिख दिया -
स्वाध्याय के समान कोई तपकर्म न हुआ और न होगा |
उपवास करनेवाले भी ध्यान दें कि
उपवास तप है, किन्तु बाह्य तप है, आभ्यंतर तप नहीं |
आभ्यंतर तप है -
स्वाध्याय |
कोरा तप हो, स्वाध्याय न हो तो ऐसा तप अधूरा है |
स्वाध्याय तप को पूर्णता प्रदान करता है |
कोरा उपवास मात्र लंघन है |
उपवास का अर्थ है - आत्मा के समीप रहना |
आत्मा के समीप तभी रहा जा सकता है,
जब उपवास के साथ स्वाध्याय का योग जुड़ता है |

- आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की " महाप्रज्ञ ने कहा..भाग - २० " से




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