Friday, July 6, 2012

गदहियाजी और बरडियाजी

वीतराग - वंदना ( चौबीसी )
क्लेश निवारक पद्य 
सरदारशहर 
श्रीचन्दजी गधिया और कस्तूरचन्दजी बरडिया के घरेलु सम्बन्ध थे 
दोनों ने कलकत्ते में नया काम शुरू किया 
संयोग की बात वि. १९५१-५२-५३ तीन साल तक लगातार फार्म घाटे में चला
लोग कहने लगे " इन बरडियों का पगफेरा ही अच्छा नहीं है "
पर श्रीचंदजी दिलेर व्यक्ति थे, बोले - " एक रोटी मुझे मिलेगी तो आधी बरडियों को भी मिलेगी "
कस्तूरीचन्दजी ने किसी सयाने से सलाह मांगी
सयाने व्यक्ति ने सुझाया
" चन्द्र चंद्रोति चंद्रेति, चन्द्र चंद्रेति शीतले
चन्द्र चन्द्र-प्रभा चन्द्र, चन्द्र चन्द्र वरानने"
माला के एक मणके पर ऊपर लिखा मंत्र पढ़ें और दुसरे पर चौबीसी का यह पद्य
" प्रभु ! लीन पनै तुम ध्यावियां, पामै इन्द्रादिक नी रिद्धि हो
बलि विविध भोग सुख सम्पदा, लहै आमोसही आदि लब्धि हो "
चौबीसी के ८ वें गीत के ४ थे पद्य से
माला शुरू हुई, श्रीचन्दजी कस्तुरीचंदजी से मिलने आये
बरडिया जी बोले - " आवो भाई श्रीचंद ! कियां आयो "
श्रीचंद्जी ने कागद निकला और कहा - कलकत्ते स्यूं समाचार है, अबै देणो कोनी रह्यो ( अनुवाद - कलकत्ते से समाचार है, घाटा नहीं रहा )
कस्तूरीचन्दजी बोले - " हैं ! अब मैं मर ज्यावां तो धोखो कोनी, धर्म रो शरणों राखज्यो ! सुखी रहीज्यो " ( अनुवाद- अब मैं मर जाऊं तो अफ़सोस नहीं है, धरम की शरण रखना, सुखी रहना )
श्रीचंद्जी गली के नुक्कड़ भी नहीं पहुंचे थे कि पीछे से आवाज़ आयी - सेठा !
वापस लौटे, कस्तुरिचंदजी गुनगुना रहे थे -
" प्रभु ! लीन पने तुम ध्यावियां, पामे इन्द्रादिक नी रिद्धि हो
विविध भोग सुख सम्पदा........"

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